सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ (Subramanian Swamy v Union of India)
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परिचय (Introduction)
सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ [(2016) 7 एससीसी 221] मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक मानहानि कानूनों की संवैधानिकता को बरकरार रखा। इस मामले में अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और अनुच्छेद 21 के तहत प्रतिष्ठा के अधिकार के बीच संतुलन की समीक्षा की गई।
मामले के तथ्य (Facts of the Case)
संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत कई याचिकाएँ दायर की गईं, जिनमें प्रमुख याचिकाकर्ताओं में सुब्रमण्यम स्वामी, राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल शामिल थे। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि:
- आपराधिक मानहानि एक औपनिवेशिक कानून है और स्वतंत्र भारत में इसकी आवश्यकता नहीं है।
- यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असंगत और अनुचित प्रतिबंध लगाता है।
- सिविल मानहानि कानून पर्याप्त हैं, इसलिए आपराधिक मानहानि की कोई जरूरत नहीं है।
न्यायालय का निर्णय (Judgment Overview)
न्यायालय ने आपराधिक मानहानि कानूनों को बरकरार रखते हुए कहा कि यह अनुच्छेद 19(2) के तहत एक उचित प्रतिबंध है और समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
मुख्य बिंदु:
- प्रतिष्ठा का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है।
- आपराधिक मानहानि कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असंगत प्रतिबंध नहीं लगाते हैं।
- सत्यता की रक्षा को 'सार्वजनिक भलाई' से जोड़ा जाना उचित है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ मामले का महत्व क्या है?
यह निर्णय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा के अधिकार के बीच संतुलन स्थापित करता है और आपराधिक मानहानि कानूनों की संवैधानिकता को बनाए रखता है।
2. क्या आपराधिक मानहानि कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं?
नहीं, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ये कानून अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध का हिस्सा हैं और समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।
3. क्या सत्यता मानहानि से सुरक्षा प्रदान करती है?
सत्यता को मानहानि से बचाव के रूप में मान्यता प्राप्त है, लेकिन इसे सार्वजनिक भलाई की सेवा करनी चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ का निर्णय भारतीय कानून में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा के अधिकार के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि आपराधिक मानहानि कानून संविधान के अनुरूप हैं और सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।

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